गीत(सखी री!)
गीत(सखी री!)
क्या बतलाऊँ तुझे सखी री!
रात कटी थी अनबन में।
बहुत मनाए सुने न साजन,
रही विकलता तन-मन में।।
मीठी-मीठी बातों से ही,
रात भयंकर कट जाती।
यदि बाहों में भर लें साजन,
विरह-तपिश भी घट जाती।
कोशिश की पर बीती सारी-
रजनी आँसू-छलकन में।।
रही विकलता तन-मन में।।
प्यार की सारी कसमें खाईं,
वादे सभी निभाने की।
सब कुछ मेरा उनको अर्पण,
कभी न तज कर जाने की।
हुआ नहीं विश्वास उन्हें पर-
मेरे दिल की धड़कन में।।
रही विकलता तन-मन में।।
कैसे इन्हें मनाऊँ मैं अब,
कोई आकर बतलाए?
कैसे इन्हें रिझाऊँ मैं अब,
राहें सच्ची दिखलाए??
राह न सूझी मुझको कोई-
बीती रजनी उलझन में।।
रही विकलता तन-मन में।।
प्यार हार तो कभी न माने,
यद्यपि राहें पथरीली।
गिरता-उठता फिर वह चलता,
फिसलन हो या भू गीली।
सच्चे प्रेमी कहते रहते-
सुख तो मिलता तड़पन में।।
रही विकलता तन-मन में।।
रात कटी थी अनबन में।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
वानी
24-Jun-2023 07:57 AM
Nice
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Abhilasha Deshpande
22-Jun-2023 03:19 PM
Very nice
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
15-Jun-2023 09:09 AM
बहुत ही सुंदर और प्रेममय गीत
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